मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यारदुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तारआँखों भर आकाश है बाहों भर संसार
लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँवहर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव
सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीतमस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत
पूजा घर में मूर्ती मीरा के संग श्यामजिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम
सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीरजिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर
अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूपजैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप
सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यासपाना खोना खोजना साँसों का इतिहास
चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरानमेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान
बच्चा बोला देख कर,मसजिद आलीशानमेरे खुदा तुझ एक को, इतना बडा मकान
मंदिर के अंदर चढे घी-पूरी-मिष्ठानमंदिर के बाहर खडा ईश्वर माँगे दान
मै था अपने खेत मे,तुझको भी था कामतेरी मेरी भूल का, राजा पड गया नाम
जादू-टोना रोज का, बच्चो का व्यवहारछोटी सी एक गेंद मे भर दे सब संसार
“सा” से “नी” तक सात सुर, सात सुरों का रागउतना ही संगीत तुझमे, जितनी तुझमें आग
सीधा-सादा डाकिया, जादू करे महानइक ही थैले मे भरे, आँसू और मुस्कान
जीवन के दिन-रैन का, कैसे लगे हीसाब,दीमक के घर बैठकर, लेखक लिखे किताब
मुझ जैसा इक आदमी मेरा ही हमनामउल्टा-सीधा वो चले, मुझे करे बदनाम
युग-युग से हर बाग़ का, ये ही एक उसूलजिसको हँसना आ गया वो ही मट्टी फूल
सुना है अपने गाँव में, रहा न अब वह नीमजिसके आगे माँद थे, सारे वैद-हक़ीम।
Thursday, June 12, 2008
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3 comments:
बहुत ही कमाल. और क्या कहूँ...अहसास भर दिए. लिखते रहिये. बहुत-बहुत शुक्रिया.
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उल्टा तीर
बहुत अच्छी रचना ली है, कृपया मूल शायर का नाम भी कविता के नीचे लिखें. मुझे उनका नाम याद नहीं आ रहा है.
cgreports.blogspot.com
Nida fazali sahab ne likhi hain..
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